Pitri paksha ( श्राद्ध / पितृ पक्ष ) - paying homage to ancestors.

/
0 Comments

...." श्राद्ध"..... 

                                                                   FACEBOOK || TWITTER                                                                                 
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा अजर-अमर रहती है। वह अपने कार्यों के भोग भोगने के लिए नाना प्रकार की योनियों में विचरण करती है। शास्त्रों में मृत्योपरांत मनुष्य की अवस्था भेद से उसके कल्याण के लिए समय-समय पर किए जाने वाले कृत्यों का निरूपण हुआ है। सामान्यत: जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का फल नर्क होता है। नर्क में जीवात्मा को बहुत यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। पुण्यात्मा मनुष्य योनि तथा देवयोनि को प्राप्त करती है। इन योनियों के बीच एक योनि और होती है वह है प्रेत योनि। वायु रूप में यह जीवात्मा मनुष्य का मन:शरीर है, जो अपने मोह या द्वेष के कारण इस पृथ्‍वी पर रहता है। पितृ योनि प्रेत योनि से ऊपर है तथा पितृलोक में रहती है। भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों तक का समय सोलह श्राद्ध या श्राद्ध पक्ष कहलाता है। शास्त्रों में देवकार्यों से पूर्व पितृ कार्य करने का निर्देश दिया गया है। श्राद्ध से केवल पितृ ही तृप्त नहीं होते अपितु समस्त देवों से लेकर वनस्पतियां तक तृप्त होती हैं।
शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं, जिसका श्राद्ध में विशेष महत्व है।
1. गौ बलि
2. श्वान बलि
3. काक बलि
4. देवादि बलि
5. पिपीलिका बलि
यहां बल‍ि से तात्पर्य किसी पशु या पक्षी की हत्या से नहीं है, बल्कि श्राद्ध के दिन जो भोजन बनाया जाता है। उसमें से इनको भी खिलाना चाहिए। इसे ही बलि कहा जाता है।
* सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है।
* यदि कोई व्यक्ति संन्यासी है तो उसका श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।
* शस्त्राघात या किसी अन्य दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
* यदि हमें अपने किसी पूर्वज के निधन की तिथि नहीं मालूम हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इसीलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है।
* आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा को भी श्राद्ध करने का विधान है। इस दिन दादी और नानी का श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध के दौरान यह सात चीजें वर्जित मानी गई- दंतधावन, ताम्बूल भक्षण, तेल मर्दन, उपवास, संभोग, औषध पान और परान्न भक्षण।
* श्राद्ध में स्टील के पात्रों का निषेध है।
* श्राद्ध में रंगीन पुष्प को भी निषेध माना गया है।
* गंदा और बासा अन्न, चना, मसूर, गाजर, लौकी, कुम्हड़ा, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज, काला नमक, जीरा आदि भी श्राद्ध में निषिद्ध माने गए हैं।
* संकल्प लेकर ब्राह्मण भोजन कराएं या सीधा इत्यादि दें। ब्राह्मण को दक्षिणा अवश्य दें।
* भोजन कैसा है, यह न पूछें।
* ब्राह्मण को भी भोजन की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
* सीधा पूरे परिवार के हिसाब से दें।
इस प्रकार आप पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद लेकर अपने कष्ट दूर कर सकते हैं। यूं भी यह व्यक्ति का कर्तव्य है, जिसे पूर्ण कर पूरे परिवार को सुखी एवं ऐश्वर्यवान बना सकते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध करते समय संकल्प अवश्य लें.....



You may also like

No comments:

Total Pageviews

Ads 468x60px

Featured Posts

Social Icons